
वो लब कि जैसे साग़र-ए-सहबा दिखाई दे,
जुम्बिश जो हो तो जाम छलकता दिखाई दे|
कृष्ण बिहारी नूर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
वो लब कि जैसे साग़र-ए-सहबा दिखाई दे,
जुम्बिश जो हो तो जाम छलकता दिखाई दे|
कृष्ण बिहारी नूर