हम में कुछ ग़ैरत ज़ियादा थी!

बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था,
हमारी कम-नसीबी हम में कुछ ग़ैरत ज़ियादा थी|

राजेश रेड्डी

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