
हमारी उनसे जो थी गुफ़्तुगू वो ख़त्म हुई,
मगर सुकूत सा कुछ दरमियान बाक़ी है|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हमारी उनसे जो थी गुफ़्तुगू वो ख़त्म हुई,
मगर सुकूत सा कुछ दरमियान बाक़ी है|
जावेद अख़्तर