ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया!

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया,
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया|

सुदर्शन फ़ाकिर

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