
निकला जो चाँद आई महक तेज़ सी ‘मुनीर’,
मेरे सिवा भी बाग़ में कोई ज़रूर था|
मुनीर नियाज़ी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
निकला जो चाँद आई महक तेज़ सी ‘मुनीर’,
मेरे सिवा भी बाग़ में कोई ज़रूर था|
मुनीर नियाज़ी
बहुत सुंदर
हार्दिक धन्यवाद जी।