आज स्वर्गीय मुकुट बिहारी ‘सरोज’ जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| सरोज जी का भी कविता लिखने और प्रस्तुत करने का अनूठा अंदाज़ था, जिसके लिए वे बहुत सराहे जाते थे|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय मुकुट बिहारी ‘सरोज’ जी का यह गीत –

पंथ, दौलत से न जीता जाएगा नादान !
स्वर्ण-कलशों में भरे मणियाँ
हज़ारों देवता भागे।
झुक गई, लेकिन,करोड़ों बार
दौलत, धूल के आगे।
धूल की, कैसे खरीदेगा अकिंचन आबरू
राख में लिपटे पड़े हैं सैकड़ों भगवान।
शीश वे, जिन पर कि
मलयानिल डुलाता था विजन।
पाँव वे, जिन पर कि नित
माथा झुकाता था गगन।
एक कण के राज्य की सीमा न पाए जीत
नत पड़े हैं, विश्वविजयी दम्भ के अरमान!
तू अभी, आरम्भ ही करने चला है
पुस्तिका का लेख।
इसलिए, उस हाथ फैलाए हुए
इन्सान को भी देख।
राह दोनों की बराबर है, बराबर चाह
हैं नहीं लेकिन बराबर, राह के सामान!
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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