
है अगर हसीं बनाना तुझे अपनी ज़िंदगी को,
तो ‘नज़ीर’ इस जहाँ को न समझ जहान-ए-फ़ानी|
नज़ीर बनारसी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
है अगर हसीं बनाना तुझे अपनी ज़िंदगी को,
तो ‘नज़ीर’ इस जहाँ को न समझ जहान-ए-फ़ानी|
नज़ीर बनारसी