
मिरी बे-ज़बान आँखों से गिरे हैं चंद क़तरे,
वो समझ सकें तो आँसू न समझ सकें तो पानी|
नज़ीर बनारसी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मिरी बे-ज़बान आँखों से गिरे हैं चंद क़तरे,
वो समझ सकें तो आँसू न समझ सकें तो पानी|
नज़ीर बनारसी