
छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर,
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर,
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं|
जावेद अख़्तर