
काली लकीरें खींच रहा है फ़ज़ाओं में,
बौरा गया है मुँह से क्यूँ खुलता नहीं धुआँ|
गुलज़ार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
काली लकीरें खींच रहा है फ़ज़ाओं में,
बौरा गया है मुँह से क्यूँ खुलता नहीं धुआँ|
गुलज़ार