
इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल,
तूने जिस फूल को पाला वो पराया होगा|
कैफ़ भोपाली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल,
तूने जिस फूल को पाला वो पराया होगा|
कैफ़ भोपाली