
इसी से जलते हैं सहरा-ए-आरज़ू में चराग़,
ये तिश्नगी तो मुझे ज़िंदगी से प्यारी है|
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इसी से जलते हैं सहरा-ए-आरज़ू में चराग़,
ये तिश्नगी तो मुझे ज़िंदगी से प्यारी है|
वसीम बरेलवी