
हम-आग़ोशियाँ शाहिद-ए-मेहरबाँ की,
ज़माने के ग़म भूल जाने की रातें|
फ़िराक़ गोरखपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम-आग़ोशियाँ शाहिद-ए-मेहरबाँ की,
ज़माने के ग़म भूल जाने की रातें|
फ़िराक़ गोरखपुरी