
‘फ़िराक़’ अपनी क़िस्मत में शायद नहीं थे,
ठिकाने के दिन या ठिकाने की रातें|
फ़िराक़ गोरखपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
‘फ़िराक़’ अपनी क़िस्मत में शायद नहीं थे,
ठिकाने के दिन या ठिकाने की रातें|
फ़िराक़ गोरखपुरी