आज मैं हिन्दी नवगीत के शिखर पुरुष स्वर्गीय शंभूनाथ सिंह जी का एक नवगीत शेयर कर रहा हूँ| स्वर्गीय शंभूनाथ सिंह जी ने नवगीत आंदोलन का कुशल नेतृत्व किया तथा नवगीत संबंधी की संकलनों का संपादन भी किया था|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय शंभूनाथ सिंह जी का यह नवगीत –

शब्द है,
स्वर है,
सजग अनुभूति भी
पर लय नहीं है!
कट गए पर हैं
अगम इस शून्य में,
उल्का सदृश
गिरते हुए मुझको
कहीं आश्रय नहीं है!
थम गए क्षण हैं
दुसह क्षण
अन्तहीन, अछोर निरवधि काल के;
फिर भी मुझे
कुछ भय नहीं है!
एक ही परिताप प्राणों में
सजग अनुभूति
पर क्यों लय नहीं है?
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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