
अब हुस्न का रुत्बा आली है अब हुस्न से सहरा ख़ाली है,
चल बस्ती में बंजारा बन चल नगरी में सौदागर हो|
इब्न ए इंशा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अब हुस्न का रुत्बा आली है अब हुस्न से सहरा ख़ाली है,
चल बस्ती में बंजारा बन चल नगरी में सौदागर हो|
इब्न ए इंशा