
हम भी अमृत के तलबगार रहे हैं लेकिन,
हाथ बढ़ जाते हैं ख़ुद ज़हर-ए-तमन्ना की तरफ़|
राही मासूम रज़ा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम भी अमृत के तलबगार रहे हैं लेकिन,
हाथ बढ़ जाते हैं ख़ुद ज़हर-ए-तमन्ना की तरफ़|
राही मासूम रज़ा