
आज जो इस बेदर्दी से हँसता है हमारी वहशत पर,
इक दिन हम उस शहर को ‘राही’ रह रह कर याद आएँगे|
राही मासूम रज़ा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
आज जो इस बेदर्दी से हँसता है हमारी वहशत पर,
इक दिन हम उस शहर को ‘राही’ रह रह कर याद आएँगे|
राही मासूम रज़ा