
ख़ुदा को भूलकर इंसान के दिल का ये आलम है,
ये आईना अगर सूरत-नुमा होता तो क्या होता|
चकबस्त बृज नारायण
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ख़ुदा को भूलकर इंसान के दिल का ये आलम है,
ये आईना अगर सूरत-नुमा होता तो क्या होता|
चकबस्त बृज नारायण