
प्यार के इस नश्शा को कोई क्या समझे,
ठोकर में जब सारा ज़माना लगता है|
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
प्यार के इस नश्शा को कोई क्या समझे,
ठोकर में जब सारा ज़माना लगता है|
वसीम बरेलवी