पंटर चला गया!

बीता दिन पंटर का आखिरी दिन था| पिछले 15 वर्ष हमारे साथ बिताने के बाद हमारा प्रिय पंटर आखिर चला गया| एक महीने का था जब हमारे पास आया था, जब हम एनटीपीसी की ऊंचाहार परियोजना में थे| दिल्ली में बेटे ने अपने एक मित्र से उसको लिया था और वहाँ से अपनी पहली रेल यात्रा करके पंटर हमारे पास आया था|


उस समय उसको कार में घूमने का बहुत शौक था और कॉलोनी के लोग, विशेष रूप से बच्चे उसको बड़े चाव से देखते थे क्योंकि लंबे बालों वाला, विदेशी नस्ल का छोटे आकार वाला ऐसा डॉगी वहाँ तो उस समय नहीं था| उसकी ब्रीड शायद ‘टैरियर’ थी जो ‘ल्हासा एप्सो’ से मिलती-जुलती ब्रीड है| वहाँ पूरे मुहल्ले का वह प्यारा था और कुछ घरों में तो बेरोकटोक जा सकता था| हमारा विभागीय ड्राइवर कहता था कि बड़ी किस्मत लिखवाकर आया है जो साहब से सेवा करवा रहा है|

कुछ वर्ष पंटर के साथ ऊंचाहार में बिताने के बाद मैं सेवानिवृत्त हो गया और हम कुछ समय उसके साथ लखनऊ के अपने आवास में आकर रहे जहां पंटर पहले भी बहुत बार हमारे साथ कार में यात्रा करके, उसकी खिड़की से पूरे रास्ते का मुआयना करते हुए आ चुका था| बाद में हम गुड़गांव शिफ्ट हुए, यह पंटर की दूसरी रेल यात्रा थी| पाँच वर्ष तक हमारे साथ पंटर गुड़गांव में रहा और उसके बाद जब हम गोवा शिफ्ट हुए, तब विमान यात्रा करनी थी और इस यात्रा में पंटर के साथ उसका छोटा भाई ‘कालू’ भी था, जो गुडगांव में ही हमारे परिवार का हिस्सा बना था| कालू ‘पग’ ब्रीड का है, जैसा वोडाफोन के विज्ञापन में आता है|

गोवा में 6 वर्ष रहने के बाद पंटर लगभग 15 वर्ष की आयु में कल चल बसा| मरने से पहले दो दिन अस्पताल में भी रहा, उसको ग्लूकोज चढ़ाया गया और ऑक्सीजन देने की कोशिश की गई जो सफल नहीं हो पाई| कुछ दिन से वह चल-फिर भी नहीं पा रहा था और इस प्रकार कहा जाएगा कि उसको ‘मुक्ति’ मिल गई| अब कालू अकेला रह गया है|

आज इसके अलावा कुछ और पोस्ट नहीं करूंगा, कल का पता नहीं|

आज के लिए इतना ही, नमस्कार।

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