हिन्दी के विख्यात व्यंग्यकार और कवि स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ त्यागी जी की एक कविता आज शेयर कर रहा हूँ| त्यागी जी की इस कविता में भी व्यंग्यकार की दृष्टि परिलक्षित होती है|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ त्यागी जी की यह कविता –

सामने फ्लैट पर
जाड़ों की सुबह ने
अलसाकर जूड़ा बाँधा;
नीचे के तल्ले में
मफ़लर से मुँह ढाँप
सुबह ने सिगरेट पी
चिक पड़ी गोश्त की दुकान पर
सुबह के टुकड़े-टुकड़े किए गए,
मेरे बरामदे में
सुबह ने अख़बार फ़ेंका;
इसके बाद बन्बा खोल
मांजने लगी बरतन
किनारे की बस्तियों से
कमर पर गट्ठर लाद
सुबह चली नदी की ओर;
सिगनल के पास
मुँह में कोयला भरे लाल सीटी देती
सुबह पुल पर गुज़री।
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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Sharmaji
Due to your posts we all stay connected with poetry
Many many thanks sir
Your collation us out of the world
Tahe dil se salaam
Thanks a lot and welcome ji.