चारों तरफ़ भीड़ गूँगे बहरों की!

है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे बहरों की,
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ|

राहत इन्दौरी

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