हर-ज़र्रा में अज़मत के गुलाब!

उसने बोए दिल-ए-हर-ज़र्रा में अज़मत के गुलाब
रेगज़ार उसके लहू से चमन आसा भी था॥

क़तील शिफ़ाई

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