यात्रा में ग़ुल खिलेंगे!

आज एक बार फिर से यात्रा के अनुभव का ज़िक्र कर लेता हूँ| इस यात्रा में मंजिल महत्वपूर्ण नहीं है, वैसे अधिकतर यात्रा का अनुभव ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, मंज़िल तो कोई न कोई चुनकर ही हम निकलते हैं|


हाँ तो 11 फरवरी’23 को मैं यात्रा पर निकला, गोवा से मुंबई होकर भोपाल जाना था, बहुत पहले से मेरे बेटे ने एअर इंडिया से टिकट बुक कराए हुए थे| गोवा से सुबह 6-50 की फ्लाइट से 8-10 पर मुंबई पहुंचना और वहाँ से 10-30 की फ्लाइट लेकर दोपहर 12-00 बजे भोपाल पहुंचना था, जो कि इस सफर के लिए हवाई यात्रा की मंजिल थी और वापसी के लिए दिल्ली होकर उससे जुड़ी अगली फ्लाइट गोवा लौटने के लिए थी| जाते समय मुंबई में लगभग 2-30 घंटे का गैप था पहुँचने और अगली फ्लाइट के चलने के बीच जबकि लौटते समय दिल्ली में यह गैप लगभग 1 घंटा 25 मिनट का था|

मुझे कम समय में कनेक्टिंग फ्लाइट पकड़ने में वैसे ही डर लगता है क्योंकि ट्रांसफर के मामलों में भी सीआईएसएफ के जवानों को सिक्योरिटी की जिम्मेदारी दे दी गई है और वे यहाँ भी पूरे विधि-विधान के साथ अपना काम करते हैं, उनको इससे क्या मतलब जी कि किसी की फ्लाइट छूट सकती है!

खैर इस यात्रा में एक नई समस्या प्रस्तुत हो गई, सुबह 6-50 पर फ्लाइट टेक-ऑफ होनी थी गोवा से, जहां सर्दी या फिर ऐसे कोहरे के बारे में कभी सुना नहीं था कि उसके कारण 2-2.30 घंटे तक कोई फ्लाइट लैंड न कर पाए, लेकिन ऐसा हुआ और 6-50 पर जाने वाली फ्लाइट, जब यहाँ आने वाली उससे जुड़ी पहली फ्लाइट लैंड हुई उसके बाद लगभग 10 बजे टेक ऑफ कर पाई| इस प्रकार जैसा कि होना ही था, मुंबई से भोपाल जाने वाली अगली फ्लाइट पहले ही कूच कर चुकी थी|

यहाँ तक जो हुआ वो तो सब कुदरत की मार थी, उसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता| लोगों के व्यवहार की परीक्षा इसके बाद होती है कि वे इस आपात स्थिति से कैसे निपटते हैं| मुंबई एयरपोर्ट पर कई अलग-अलग स्थानों तक जाने वाले शायद लगभग 15 लोग थे जिनकी फ्लाइट मिस हो गई थी, मुझे भोपाल जाने वालों की जानकारी है जो 6 थे| अब वहाँ तलाश शुरू हुई कि एअर इंडिया का कौन सा जिम्मेदार अधिकारी है जो हमारी मदद कर सकता है| शुरू में तो उनके अधिकारी यही कहते रहे कि गोवा वालों ने अपना सिरदर्द हमको दे दिया है| फिर इसमें सीआईएसएफ की भूमिका भी आई क्योंकि आगे जाने का टिकट जारी कराने हेतु हम लोगों को टिकट काउंटर पर जाना था, और सीआईएसएफ वाले अपने उच्च अधिकारी से आदेश पाए बिना वहाँ जाने नहीं दे सकते थे| काफी समय के बाद यह समस्या हल हुई और हम लोगों को टिकट काउंटर के एक सुपरवाइज़र के हवाले कर दिया गया| वह श्रीमान जी ऐसे कल्चर में पनपे हुए लगे, जिसमें लोग बिना काम किए तनख्वाह पाना चाहते हैं, खास तौर पर ऐसी आपात कालीन स्थिति से निपटने के लिए उनमें उत्साह और संकट में फंसे लोगों के प्रति सहानुभूति बिल्कुल नहीं थी| डेढ़-दो घंटे तक वे लोगों को यूं ही टालते रहे, अंत में एक दूसरी महिला ने हम लोगों को बताया कि वे मुंबई से हमें शाम की फ्लाइट द्वारा दिल्ली ले जाएंगे और वहाँ होटल में रात्रि विश्राम कराकर सुबह हमको भोपाल की फ्लाइट में भेजा जाएगा| यह अच्छा विकल्प था लेकिन बहुत देर में आया, क्योंकि जो सज्जन इससे पहले डील कर रहे थे, वो कुछ आश्वासन देने को ही तैयार नहीं थे, इसलिए मैंने इससे पहले ही ये फैसला कर लिया था कि मैं शाम को अन्य फ्लाइट से इंदौर जाकर वहाँ से टैक्सी लेकर भोपाल चला जाऊंगा|

मैंने अपनी टिकट यहाँ कैंसिल करा दी और मुझे अपनी चेक-इन की हुई अटैची वापस लेनी थी और अटैची वापस करने की जिम्मेदारी उन सज्जन के पास ही थी जिनकी काम करने की आदत नहीं थी, उन्होंने कहा कि उसके आने में 1 घंटा लग जाएगा, एक घंटा बाद मैं फिर आया तब उन्होंने कहा कि टाइम लगता है, इसके बाद 2 घंटे होने तक मैं कई बार वहाँ गया और उनका एक ही जवाब था- ‘टाइम लगता है’| इन श्रीमान जी को वहाँ फंसे लोगों से किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं थी| फिर लगभग ढाई घंटे बाद एक अन्य महिला ने मेरा नाम पूछकर पता किया तो मालूम हुआ कि मेरी अटैची को अब तक ढूंढा ही नहीं जा रहा था, जबकि वे निकम्मे सज्जन बार-बार एक ही जवाब देते थे ‘टाइम लगता है’| इस प्रकार उस महिला के प्रयासों से मेरी अटैची वापस मिली, जिसे मैंने अन्य एयरलाइन के काउंटर पर चेक इन करके जमा किया और अपने बदले कार्यक्रम के अनुसार आगे की यात्रा|

ऐसे ही मन हुआ कि उन सज्जन का थोड़ा गुणगान करूं जिनको परेशान हो रहे यात्रियों से कोई सहानुभूति नहीं थी, शायद ऐसे लोग ही एअर इंडिया को बदनाम करते हैं|

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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