
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद,
या’नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया|
मीर तक़ी मीर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद,
या’नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया|
मीर तक़ी मीर