अब शम्अ जलाऊँ किसके लिए!

मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी है घर की फ़ज़ा,
इन ख़ाली कमरों में ‘नासिर’ अब शम्अ जलाऊँ किसके लिए|

नासिर काज़मी

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