गुल-दान सजाऊँ किस के लिए!

अब शहर में उसका बदल ही नहीं कोई वैसा जान-ए-ग़ज़ल ही नहीं,
ऐवान-ए-ग़ज़ल में लफ़्ज़ों के गुल-दान सजाऊँ किस के लिए|

नासिर काज़मी

Leave a Reply