एक बार फिर मैं हिन्दी के श्रेष्ठ रचनाकार स्वर्गीय सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी की एक मार्मिक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ| इस कविता में हमारे हृदयहीन सिस्टम का सटीक चित्रण किया गया है| सर्वेश्वर जी की बहुत सी रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी की यह कविता –

काम न मिलने पर
अपने तीन भूखे बच्चों को लेकर
कूद पड़ी हंजूरी कुएँ में
कुएँ का पानी ठंडा था।
बच्चों की लाश के साथ
निकाल ली गई हंजूरी कुएँ से
बाहर की हवा ठंडी थी।
हत्या और आत्महत्या के अभियोग में
खड़ी थी हंजूरी अदालत में
अदालत की दीवारें ठंडी थीं।
फिर जेल में पड़ी रही
हंजूरी पेट पालती
जेल का आकाश ठंडा था।
लेकिन आज अब वह जेल के बाहर है
तब पता चला है
कि सब-कुछ ठंडा ही नहीं था-
सड़ा हुआ था
सड़ा हुआ है
सड़ा हुआ रहेगा
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
********