
ऐ मैं सौ जान से इस तर्ज़-ए-तकल्लुम के निसार,
फिर तो फ़रमाइए क्या आपने इरशाद किया|
जोश मलीहाबादी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ऐ मैं सौ जान से इस तर्ज़-ए-तकल्लुम के निसार,
फिर तो फ़रमाइए क्या आपने इरशाद किया|
जोश मलीहाबादी