
दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं,
जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं,
जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़