
जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा,
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई|
परवीन शाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा,
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई|
परवीन शाकिर