वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया!

मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो,
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया|

परवीन शाकिर

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