
मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो,
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया|
परवीन शाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो,
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया|
परवीन शाकिर