
ख़्वाब तो ख़्वाब थे आँखों में कहाँ रुक जाते,
वो दबे पाँव उन्हें भी तो चुराने निकले|
रज़ा अमरोहवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ख़्वाब तो ख़्वाब थे आँखों में कहाँ रुक जाते,
वो दबे पाँव उन्हें भी तो चुराने निकले|
रज़ा अमरोहवी