सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं!

दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें,
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं|

जाँ निसार अख़्तर

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