सूरज की पेशी!

अपने समय में हिन्दी के एक प्रमुख कवि और बच्चों की पत्रिका ‘पराग’ के संपादक रहे स्वर्गीय कन्हैयालाल नंदन जी की एक रचना आज शेयर कर रहा हूँ| नंदन जी की कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|

लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय कन्हैयालाल नंदन जी का यह नवगीत –


आँखों में रंगीन नज़ारे
सपने बड़े-बड़े
भरी धार लगता है जैसे
बालू बीच खड़े ।

बहके हुए समंदर
मन के ज्वार निकाल रहे
दरकी हुई शिलाओं में
खारापन डाल रहे
मूल्य पड़े हैं बिखरे जैसे
शीशे के टुकड़े. !

नजरों के ओछेपन
जब इतिहास रचाते हैं
पिटे हुए मोहरे
पन्ना-पन्ना भर जाते हैं
बैठाए जाते हैं
सच्चों पर पहरे तगड़े ।

अंधकार की पंचायत में
सूरज की पेशी
किरणें ऐसे करें गवाही
जैसे परदेसी
सरेआम नीलाम रोशनी
ऊँचे भाव चढ़े ।

आँखों में रंगीन नज़ारे
सपने बड़े-बड़े
भरी धार लगता है जैसे
बालू बीच खड़े ।


(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|

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