
मैं उदासियाँ न सजा सकूँ कभी जिस्म-ओ-जाँ के मज़ार पर,
न दिए जलें मिरी आँख में मुझे इतनी सख़्त सज़ा न दे|
बशीर बद्र
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मैं उदासियाँ न सजा सकूँ कभी जिस्म-ओ-जाँ के मज़ार पर,
न दिए जलें मिरी आँख में मुझे इतनी सख़्त सज़ा न दे|
बशीर बद्र