मुझे इतनी सख़्त सज़ा न दे!

मैं उदासियाँ न सजा सकूँ कभी जिस्म-ओ-जाँ के मज़ार पर,
न दिए जलें मिरी आँख में मुझे इतनी सख़्त सज़ा न दे|

बशीर बद्र

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