आओ हम धूप-वॄक्ष काटें!

हिन्दी नवगीत के एक प्रमुख हस्ताक्षर श्री माहेश्वर तिवारी जी का एक नवगीत आज शेयर कर रहा हूँ| श्री माहेश्वर जी की कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|

लीजिए आज प्रस्तुत है श्री माहेश्वर तिवारी जी का यह नवगीत –

आओ हम धूप-वॄक्ष काटें ।
इधर-उधर हलकापन बाँटें ।

अमलतास गहराकर फूले
हवा नीमगाछों पर झूले,
चुप हैं गाँव, नगर, आदमी
हमको, तुमको, सबको भूले

हर तरफ़ घिरी-घिरी उदासी
आओ हम मिल-जुल कर छाँटें ।

परछाईं आ कर के सट गई
एक और गोपनता छँट गई,
हल्दी के रँग-भरे कटोरे-
किरन फिर इधर-उधर उलट गई

यह पीलेपन की गहराई
लाल-लाल हाथों से पाटें ।

आओ हम धूप-वृक्ष काटें ।


(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|

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