
बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं,
एक से जाने हम कितने हो जाते हैं|
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं,
एक से जाने हम कितने हो जाते हैं|
वसीम बरेलवी