
ख़ुश्बू अपने रस्ते ख़ुद तय करती है,
फूल तो डाली के हो कर रह जाते हैं|
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ख़ुश्बू अपने रस्ते ख़ुद तय करती है,
फूल तो डाली के हो कर रह जाते हैं|
वसीम बरेलवी