ओज़ोन लेयर!

आज एक बार फिर मैं प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि और श्रेष्ठ मंच संचालक श्री अशोक चक्रधर जी की एक लंबी कविता शेयर कर रहा हूँ| आज की रचना में उन्होंने आज के जीवन की अनेक प्रकार की विसंगतियों का विवरण दिया है| चक्रधर जी की कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|

लीजिए आज प्रस्तुत है श्री अशोक चक्रधर जी की यह कविता –


पति-पत्नी में
बिलकुल नहीं बनती है,
बिना बात ठनती है।
खिड़की से निकलती हैं
आरोपों की बदबूदार हवाएं,
नन्हे पौधों जैसे बच्चे
खाद-पानी का इंतज़ाम
किससे करवाएं ?

होते रहते हैं
शिकवे-शिकायतों के
कंटीले हमले,
सूख गए हैं
मधुर संबंधों के गमले।
नाली से निकलता है
घरेलू पचड़ों के कचरों का
मैला पानी,
नीरस हो गई ज़िंदगानी।
संबंध
लगभग विच्छेद हो गया है,
घर की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।

सब्ज़ी मंडी से
ताज़ी सब्ज़ी लाए गुप्ता जी
तो खन्ना जी मुरझा गए,
पांडे जी
कृपलानी के फ़्रिज को
आंखों-ही-आंखों में खा गए
जाफ़री के
नए-नए सोफ़े को
काट गई
कपूर साहब की
नज़रों की कुल्हाड़ी,
सुलगती ही रहती है
मिसेज़ लोढ़ा की
ईर्ष्या की काठ की हांडी।

सोने का सैट दिखाया
सरला आंटी ने
तो कट के रह गईं
मिसेज़ बतरा,
उनकी इच्छाओं की क्यारी में
नहीं बरसता है
ऊपर की कमाई के पानी का
एक भी क़तरा।

मेहता जी का
जब से प्रमोशन हुआ है,
शर्मा जी के अंदर कई बार
ज़बर्दस्त भूक्षरण हुआ है।
बीहड़ हो गई है
आपस की राम-राम,
बंजर हो गई है
नमस्ते दुआ सलाम।

बस ठूंठ-जैसा
एक मक़सद-विहीन सवाल है—
‘क्या हाल है ?’
जवाब को भी जैसे
अकाल ने छुआ है
मुर्दनी अंदाज़ में—
‘आपकी दुआ है।’

अधिकांश लोग नहीं करते हैं
चंदा देकर
एसोसिएशन की सिंचाई,
सैक्रेट्री
प्रैसीडेंट करते रहते हैं
एक दूसरे की खिंचाई।
खुल्लमखुल्ला मतभेद हो गया है,
कॉलोनी की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।


बरगद जैसे बूढ़े बाबा को
मार दिया बनवारी ने
बुढ़वा मंगल के दंगल में,
रमतू भटकता है
काले कोटों वाली कचहरी के
जले हुए जंगल में।
अभावों की धूल
और अशिक्षा के धुएं से
काले पड़ गए हैं
गांव के कपोत
सूख गए हैं

चौधरियों की उदारता के
सारे जलस्रोत।
उद्योग चाट गए हैं
छोटे-मोटे धंधे,
कमज़ोर हो गए हैं
बैलों के कंधे।
छुट्टल घूमता है
सरपंच का बिलौटा,
रामदयाल
मानसून की तरह
शहर से नहीं लौटा।

सुजलाम् सुफलाम्
शस्य श्यामलाम् धरती जैसी
अल्हड़ थी श्यामा।
सब कुछ हो गया
लेकिन न शोर हुआ
न हंगामा।
दिल दरक गया है
लाखों हैक्टेअर
परती धरती की तरह
श्यामा का चेहरा
सफ़ेद हो गया है,
गांव की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।


(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|

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