ज़ख़्म- मुस्कुराए हैं क्या क्या!

जब उसने हार के ख़ंजर ज़मीं पे फेंक दिया,
तमाम ज़ख़्म-ए-जिगर मुस्कुराए हैं क्या क्या|

कैफ़ी आज़मी

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