
कहीं अँधेरे से मानूस हो न जाए अदब,
चराग़ तेज़ हवा ने बुझाए हैं क्या क्या|
कैफ़ी आज़मी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कहीं अँधेरे से मानूस हो न जाए अदब,
चराग़ तेज़ हवा ने बुझाए हैं क्या क्या|
कैफ़ी आज़मी