
कुछ ‘मीर’ के अबयात थे कुछ ‘फ़ैज़’ के मिसरे,
इक दर्द का था जिनमें बयाँ याद रहेगा|
इब्न-ए-इंशा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कुछ ‘मीर’ के अबयात थे कुछ ‘फ़ैज़’ के मिसरे,
इक दर्द का था जिनमें बयाँ याद रहेगा|
इब्न-ए-इंशा