दर्द का था जिनमें बयाँ याद रहेगा!

कुछ ‘मीर’ के अबयात थे कुछ ‘फ़ैज़’ के मिसरे,
इक दर्द का था जिनमें बयाँ याद रहेगा|

इब्न-ए-इंशा

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