
उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा,
वो शहर वो कूचा वो मकाँ याद रहेगा|
इब्न-ए-इंशा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा,
वो शहर वो कूचा वो मकाँ याद रहेगा|
इब्न-ए-इंशा