
हमने उन तुंद-हवाओं में जलाए हैं चराग़,
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर|
जाँ निसार अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हमने उन तुंद-हवाओं में जलाए हैं चराग़,
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर|
जाँ निसार अख़्तर
उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने,
जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर|
जाँ निसार अख़्तर
हमसे इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई,
वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर|
जाँ निसार अख़्तर
इश्क़ रहज़न न सही इश्क़ के हाथों फिर भी,
हमने लुटती हुई देखी हैं बरातें अक्सर|
जाँ निसार अख़्तर
और तो कौन है जो मुझ को तसल्ली देता,
हाथ रख देती हैं दिल पर तिरी बातें अक्सर|
जाँ निसार अख़्तर
हमने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर,
दिल से गुज़री हैं सितारों की बरातें अक्सर|
जाँ निसार अख़्तर
हमसे पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या,
चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए|
जाँ निसार अख़्तर
कम नहीं नश्शे में जाड़े की गुलाबी रातें,
और अगर तेरी जवानी भी मिला दी जाए|
जाँ निसार अख़्तर
इन्हीं गुल-रंग दरीचों से सहर झाँकेगी,
क्यूँ न खिलते हुए ज़ख़्मों को दुआ दी जाए|
जाँ निसार अख़्तर
दिल का वो हाल हुआ है ग़म-ए-दौराँ के तले,
जैसे इक लाश चटानों में दबा दी जाए|
जाँ निसार अख़्तर