
आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया,
बंद गली के आख़िरी घर को खोल के फिर आबाद किया|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया,
बंद गली के आख़िरी घर को खोल के फिर आबाद किया|
निदा फ़ाज़ली