आज बिना किसी भूमिका के, हमारे लोकप्रिय पूर्व प्रधान मंत्री भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक कविता शेयर कर रहा हूँ|
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी एक सहृदय मनुष्य और मंजे हुए राजनेता होने के साथ ही एक श्रेष्ठ कवि भी थे| लीजिए प्रस्तुत है वाजपेयी जी की एक कविता, जो मनाली के पहाड़ी इलाकों के एक अनुभव पर आधारित है –

न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
सवेरा है मगर पूरब दिशा में
घिर रहे बादल
रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पाँव
ओझल गाँव
जड़ता है न गतिमयता
स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
मैं देख पाता हूं
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
समय की सदर साँसों ने
चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती
चुनौती एक दुर्ममाला,
बिखरे नीड़,
विहँसे चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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