
दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन,
उम्र भर कौन जवाँ कौन हसीं रहता है|
अहमद मुश्ताक़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन,
उम्र भर कौन जवाँ कौन हसीं रहता है|
अहमद मुश्ताक़
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए,
इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है|
अहमद मुश्ताक़
इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे,
और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है|
अहमद मुश्ताक़
जिसकी साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे,
ऐ मकाँ बोल कहाँ अब वो मकीं रहता है|
अहमद मुश्ताक़
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है,
वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है|
अहमद मुश्ताक़