
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता|
अकबर इलाहाबादी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता|
अकबर इलाहाबादी
तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से,
होता है शगुफ़्ता मगर इतना नहीं होता|
अकबर इलाहाबादी
अल्लाह बचाए मरज़-ए-इश्क़ से दिल को,
सुनते हैं कि ये आरिज़ा अच्छा नहीं होता|
अकबर इलाहाबादी
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता,
आँख उनसे जो मिलती है तो क्या क्या नहीं होता|
अकबर इलाहाबादी
या रब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से,
मैं उसकी इनायत का तलबगार नहीं हूँ|
अकबर इलाहाबादी
वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है,
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ|
अकबर इलाहाबादी
अफ़्सुर्दा हूँ इबरत से दवा की नहीं हाजत,
ग़म का मुझे ये ज़ोफ़ है बीमार नहीं हूँ|
अकबर इलाहाबादी
इस ख़ाना-ए-हस्ती से गुज़र जाऊँगा बे-लौस,
साया हूँ फ़क़त नक़्श-ब-दीवार नहीं हूँ|
अकबर इलाहाबादी
ज़िंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी,
हर-चंद कि हूँ होश में हुश्यार नहीं हूँ|
अकबर इलाहाबादी
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ,
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ|
अकबर इलाहाबादी